Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता )

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Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता )

Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) का सबसे प्रशिद्ध नाम हड़प्पा सभ्यता है । सन 1921 ई में रायबहादुर दयाराम साहनी ने हड़प्पा की खुदाई करवाई थी । हड़प्पा संस्कृति का केंद्र पंजाब और सिंध में , सिंधु घाटी में पड़ता है । सिंधु सभ्यता की खोज रायबहादुर दयाराम साहनी ने की थी । सिंधु सभ्यता या सैंधव सभ्यता नगरीय सभ्यता थी । सिंधु सभ्यता से प्राप्त परिपक्व अवस्था वाले स्थलों में केवल 6 को ही बड़े नगर की संज्ञा की गई है – मोहनजोदड़ो , हड़प्पा , गांवरीवाला , धौलावीरा , राखीगढ़ी एवं कालीबंगन । हड़प्पा सभ्यता के नियोजित शहर कांस्य काल के थे , इसलिए कही – कही इसको कांस्य युगीन सभ्यता भी कहा गया है ।

क्रेडिट – यह पोस्ट अथवा पाठ्य सामग्री NCERT की पुस्तक सर महेश कुमार बरनवाल जी की सामान्य ज्ञान की पुस्तक तथा Lucent’s की GK नामक पुस्तक से लिया गया है । किसी भी Competitive Exams की तैयारी के लिए NCERT की पुस्तक बहुत अच्छी है ।

सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे प्रधान विशेषता ( Sindhu Sabhyata ki Visheshta )

हड़प्पा संस्कृति या Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) की प्रमुख विशेषता इसकी नगर योजना प्रणाली थी । हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दोनों नगरों के अपने – अपने दुर्ग थे । नगरों में भवनों के बारे में विशिष्ट बात यह थी की ये जल की तरह व्यवस्थित थे । सड़के एक – दूसरे को समकोण बनाते हुए कटती थी तथा नगर खंडो में बाटे हुए थे ।

Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) में घरो का निर्माण एक सीध में व्यवस्थित ढंग से सडको के किनारे किया जाता था । भवनों के दरवाजे सडको की और या सहायक सडको की और खुलते थे । Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) में दो मंजिल घर भी थे । घरो में कई कमरे , रसोईघर , स्नानागार तथा बीच में आँगन की व्यवस्था थी ।

image source – Google । image by – NCERT

महत्वपूर्ण नोट – मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजानिक स्थल विशाल स्नानागार है । यह 11.88 मीटर लम्बा , 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है । इसमें उतरने के लिए उत्तर तथा दक्षिण की और सीढिया बानी हुई थी । स्नानागार का फर्श पक्की ईंटो का बना है एवं इसके मध्य में स्नानकुंड स्थित था । इस विशाल स्नानागार का उपयोग सार्वजानिक रूप से धर्मानुष्ठान सम्बन्धी स्नान के लिए होता था । जॉन मार्शल के विशाल स्नानागार को विश्व का आश्चर्यजनक निर्माण बताया था । यह जल पूजा का एकमात्र साक्ष्य है ।

मोहनजोदड़ो में एक अन्नागार भी मिला है , जो 45.71 मीटर लम्बा और 15.23 मीटर चौड़ा है । हड़प्पा के दुर्ग में 6 अन्नागार मिले है , जो ईंटो के बने चबूतरों पर दो पंक्तियों में खड़े है । प्रत्येक अन्नागार 15.23 मीटर लम्बा और 6.09 मीटर चौड़ा है । कालीबंगा के अनेक घरो में कुएं पाए गए है । घरो का पानी बहकर सड़को तक आता था , जहा इनके निचे मोरिया बनी हुई थी । ये मोरिया ईंटो और पथरो को तख्तियों से ढकी रहती थी ।

सिंधु घाटी की सभ्यता में कृषि तथा पशुपालन का वर्णन ( Sindhu Ghati Sabhyata ke Krishi tatha Pashupalan )

कृषि – सिंधु प्रदेश में पहले बहुत काम वर्षा होती थी । यहाँ के समृद्ध देहातो और नगरों को देखने से ज्ञान होता होता है कि प्राचीन काल में यह प्रदेश उपजाऊ था । सिंधु सभ्यता के लोग नवंबर के महीने में बाद वाले महीनो में बीज बो देते थे और अगली बाद के आने से पहले अप्रैल महीने में गेंहू और जौ कि फसल काट लेते थे । सिंधु सभ्यता के लोग गेंहू , जौ , राई , मटर आदि अनाज पैदा करते थे । वे दो किस्म का गेहू और जौ उगाते थे ।

इसके अतिरिक्त वे तिल और सरसो भी उगाते थे । चावल के साक्ष्य लोथल और रंगपुर से मिले है । गन्ना का कोई साक्ष्य नहीं मिला है । Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) के अनुसार लोथल और सौराष्ट्र से बाजरे की खेती एवं रोजदी ( गुजरात ) से रागी के विषय में साक्ष्य मिले है । सिंधुवासी हल के प्रयोग से परिचित थे । कालीबंगा में हड़प्पा काल के कुंड ( हलरेखा ) देखे गए है , जिनसे अनुमान लगाया गया कि हड़प्पा काल में राजस्थान में हल का प्रयोग होता था ।

Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) में पशुपालन – हड़प्पा सभ्यता के लोग बैल , गाय , भैंस , भेड़ और सूअर पालते थे । इन्हे कूबड़ वाला सांड विशेष प्रिय था । इसके अतिरिक्त ये गद्दे और ऊंट भी रखते थे । प्रारम्भ से ही कुत्तो को पालतू बनाया गया । कुत्ते तथा बिल्ली दोनों के ही पैरो के निशान मिले है । सिन्धुवासी हाथी और घोड़े से परिचित तो थे , लेकिन हाथी और घोड़े के पालतू होने के साक्ष्य प्रमाणित नहीं हो सके है । घोड़े के अस्तित्व का संकेत मोहनजोदड़ो की ऊपरी सतह से तथा लोथल में मिली एक संदिग्ध मृण्मूर्ति ( टेराकोटा ) से मिला है ।

Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) में गेंडा का प्रमाण ( भारतीय गेंडा का एकमात्र प्रमाण ) आमरी से मिला है । बन्दर , भालू , खरहा आदि जंगली जानवरो का भी ज्ञान था ।

सिंधुघाटी सभ्यता में शिल्प और तकनिकी ज्ञान ( Sindhu Ghati ki Sabhyata me Shilp aur Takniki Gyan )

Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) के अनुसार हड़प्पाई लोग कांस्य के निर्माण और प्रयोग से भली – भांति परिचित थे । कांसा , ताम्बे में टिन को मिलकर धातु बनाया जाता था । ताम्बा , राजस्थान की खेतड़ी के ताम्रा – खानो से मंगाया जाता था और टिन अफगानिस्तान से मगाया जाता था । हड़प्पाई स्थलों से कांसे के औजार और हथियार मिले है , उनमे टिन की मात्रा अत्यंत काम है । मोहनजोदड़ो से बने हुए सूती कपडे का एक टुकड़ा मिला है तथा कई वस्तुओ पर कपडे का छाप देखने को मिला है ।

Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) में ईंटो की विशाल इमारते देखने को मिला है , जिससे ये पता चलता है कि स्थापत्य ( राजगिरि ) महत्पूर्ण शिल्प था ।

स्वर्णकार चाँदी , सोना और रत्नो के आभूषण बनाते थे । सोना , चाँदी संभवतः अफगानिस्तान से और रत्न दक्षिण भारत से आते थे । कुम्हार के चाक का अधिक प्रचलन था , ये मृदभांडों को चिकना और चमकीला बनाते थे ।

सिंधु घाटी सभ्यता का व्यापार ( Sindhu Ghati Sabhyata ka Vyapar )

ये लोग पत्थर , धातु और हड्डी आदि का व्यापर करते थे । वे धातु के सिक्को का प्रयोग नहीं करते थे । ये लोग पहिओ से भी परिचित थे तथा हड़प्पा में ठोस पहिओ वाली गाडिया प्रशिद्ध थी ।

मेसोपोटामिया की खुदाई में बहुत सी हड़प्पाई मुहरे प्राप्त हुई है , जिससे प्रतीत होता है की हड़प्पाई लोगो ने मेसोपोटामिया के नागरिको के कई प्रसाधनों का अनुकरण किया है । मेसोपोटामिया से जल एवं थल दोनों प्रकार के व्यापारों का प्रमाण मिला है । मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर नाव के चित्रांकन और लोथल से प्राप्त मिटटी निर्मित खिलौना नाव से यह अनुमान होता है कि सिन्धुवासी आतंरिक और वाह्य व्यापर के लिए मस्तूल वाली नवो का उपयोग करते थे । सिंधु सभ्यता के काल में पॉट निर्माण एवं नावों द्वारा समुद्री व्यापर होने कि पुष्टि लोथल से प्राप्त गोडवाडा के साक्ष्य से होती है ।

सिंधु सभ्यता में प्रमुख आयतिक कच्चा माल

टिन – अफगानिस्तान , ईरान

ताम्बा – खेतड़ी ( राजस्थान ) , बलूचिस्तान

चाँदी – ईरान , अफगानिस्तान

सोना – अफगानिस्तान , फारस , दक्षिणी भारत

लाजवर्द – मेसोपोटामिया , अफगानिस्तान

सेलखड़ी – बलूचिस्तान , राजस्थान , गुजरात

नीलमणि – महाराष्ट्र

नीलरत्न मणि – बदख्शां ( अफगानिस्तान )

हरित मणि – दक्षिण एशिया

शंख / कौड़ियाँ – सौराष्ट्र , दक्षिणी भारत

सीसा – ईरान , अफगानिस्तान , राजस्थान

शिलाजीत – हिमालय

राजनितिक , सामाजिक एवं धार्मिक वर्णन ( Sindhu Ghati Sabhyata ka Rajnitik , Samajik aivam Dharmik Varnan )

राजनितिक संगठन – हड़प्पा संस्कृति की व्यापकता एवं विकास को देखने से ऐसा लगता है कि यह सभ्यता किसी केंद्रीय शक्ति से संचालित होती थी । वहीलर ने सिंधु सभ्यता के लोगो के शासन को माध्यम वर्गीय जनतन्त्रात्मक शासन कहा और उसमे धर्म कि महत्ता को स्वीकार किया । हंटर के अनुसार मोहनजोदड़ो का शासन राजतंत्रात्मक न होकर जनतन्त्रात्मक था । मैके के अनुसार – मोहनजोदड़ो का शासन एक प्रतिनिधि शासक के हाथ में था ।

सामाजिक जीवन – Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) के अनुसार समाज की इकाई परंपरागत तौर पर परिवार थी । मातृदेवी की पूजा तथा मुहरों पर अंकित चित्र से यह प्रतीत होता है कि हड़प्पा समाज संभवतः मातृसत्तात्मक था । नगर नियोजन दुर्ग , मकानों के आकर और रुपरेखा तथा शवों के दफ़नाने के ढंग को देखकर ऐसा लगता है कि सिंधु घाटी सभ्यता में अनेक वर्गों जैसे – पुरोहित , व्यापारी , अधिकारी , शिल्पी , जुलाहे एवं श्रमिकों में विभाजित रहा होगा । सिंधु सभ्यता में मनोरंजन के लिए पसे का खेल , नृत्य , शिकार , पशुओ कि लड़ाई आदि प्रमुख साधन थे ।

धार्मिक जीवन – हड़प्पा में पक्की मिटटी की बनी स्त्री – मुर्तिया बड़ी संख्या में मिली है । एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता एक पौधा दिखाया गया है । जो संभवतः पृथवी देवी की प्रतिमा है और इसका पौधा के जन्म और वृद्धि से होगा ।

Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) में पुरुष देवता को एक मुहर पर चित्रित किया गया है । उसके सिर पर तीन सींग है । मुहर पर चित्रित देवता को पशुपति महादेव बतलाया जाता है । सिंधु सभ्यता में लिंग पूजा का भी प्रचलन पते है , जो कालांतर में शिव की पूजा से गहन रूप से जुड़ गई थी । मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर पर स्वस्तिक का अंकन सूर्य पूजा का प्रतीत माना जाता है । हिन्दू धर्म में आज भी स्वस्तिक को पवित्र मांगलिक चिन्ह माना जाता है ।

सिंधु घाटी सभ्यता में माप – तौल , मृदभांड , प्रतिमाये और कालीबंगा से मिली मुहरों का उल्लेख 

Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) में माप – तौल – हड़प्पाई लोग मापना भी जानते थे । बाट के रूप में मनके और जवाहरात की बहुत सी वस्तुए पाई जाती है , जिनसे प्रकट होता है कि तौल में 16 या उसके आवर्तको का प्रयोग होता था , जैसे – 16 , 64 , 160 , 320 और 640। तराजू सुरकोटदा से मिला है ।

Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) में मृदभांड – हड़प्पाई लोग कुम्हार के चाक का उपयोग करने में कुशल थे । मृदभांड अधिकांश लाल और गुलाबी रंग के थे । इन पर आंकलन काळा रंग से हुआ था । मृदभांड पर सिंधु लिपि मिलती है । लोथल से प्राप्त मृदभांड में एक वृक्ष पर मुँह में मछली पकडे हुए एक पक्षी को दर्शाया गया है तथा निचे एक लोमड़ी का चित्र है ।

Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) में प्रतिमाये – कांसे की नर्तकी उनकी मूर्तिकल का सर्वश्रेठ नमूना है । सम्पूर्ण मूर्ति गले में पड़े हार के अलावा पुरतः नग्न है । यह लुप्त मोम पद्धति पर आधारित है ।

Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) में कालीबंगा से मिली मुहरों का उल्लेख – सिंधु घाटी सभ्यता की सर्वोत्तम कलाकृतियाँ उसकी मुहरे है । अब तक लगभग 2000 मुहरे प्राप्त हुए है । मुहरों पर लघु लेखो के साथ – साथ एकशृंगि पशु , भैंस , बाघ , सांड , बकरी और हाथी की आकृतियाँ बनाई है ।

सिंधु घाटी सभ्यता में अंतिम संस्कार ( Sindhu Ghati Sabhyata me Antim Sanskar)

सिंधु सभ्यता में मृतकों के अंतिम संस्कार की तीन प्रथाएं मिलती है –

दाह – संस्कार – इसमें शव को पूर्ण रूप से जलने के बाद भस्मावशेष को मिटटी के पत्र में रखकर दफना दिया जाता था । यह सर्व प्रमुख प्रथा थी ।

आंशिक समाधिकरण – इसमें पशु – पक्षिओ के खाने के बाद बचे शेष भाग को भूमि में दफना दिया जाता था ।

पूर्ण समाधिकरण – इसमें सम्पूर्ण शव को भूमि में दफना दिया जाता था ।

हड़प्पा सभ्यता के विनाश का कारण

Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) के पतन के कारण अनेक बताया जाता है । कई इतिहासकारो के अपने अपने मत रखे है , जिनमे से कुछ निम्नलिखित कारण है –

कुछ लोगो के मत के अनुसार पड़ोस के रेगिस्तान के फैलने से मिटटी में लवणता बाद गई और उर्वरता घटती गई , इसी से सिंधु सभ्यता का पतन हो गया ।

जमीन धंस गई या ऊपर उठ गई

भूकंप के कारन सिंधु नदी की धरा बदल गई , जिसके फलस्वरूप मोहनजोदड़ो का पृष्ट प्रदेश वीरान हो गया ।

कई इतिहासकारो का मानना है कि हड़प्पा संस्कृति को आर्यो ने नष्ट कर दिया , परन्तु इसके साक्ष्य बहुत काम है ।

वनो का कटाव , संसाधन में कमी एवं पारिस्थितिक असंतुलन , पतन का कारण था ।

लैम्ब्रिक के अनुसार – जनसँख्या वृद्धि भी एक कारण हो सकता है ।

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Sindhu Ghati Sabhyata Quiz in Hindi

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Sindhu Ghati Sabhyata FAQ’s

Answer – हड़प्पा वासिओ को कूबड़ वाला सांड अत्यधिक प्रिय था , परन्तु इसके प्रमाण कहाँ से प्राप्त हुए है इसका वर्णन साफ नहीं है ।

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Answer – आग में पकी हुई मिटटी को टेराकोटा कहा जाता है ।

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Answer – सिंधु घाटी सभ्यता में लोग आद्य शिव की पूजा करते थे ।  सिंधु सभ्यता में लिंग पूजा का भी प्रचलन पते है , जो कालांतर में शिव की पूजा से गहन रूप से जुड़ गई थी । हड़प्पा में पक्की मिटटी की बनी स्त्री – मुर्तिया बड़ी संख्या में मिली है । एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता एक पौधा दिखाया गया है । जो संभवतः पृथवी देवी की प्रतिमा है और इसका पौधा के जन्म और वृद्धि से होगा ।

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Answer – ईंट की विमाओ का अनुपात 16 था । हड़प्पाई लोग मापना भी जानते थे । बाट के रूप में मनके और जवाहरात की बहुत सी वस्तुए पाई जाती है , जिनसे प्रकट होता है कि तौल में 16 या उसके आवर्तको का प्रयोग होता था , जैसे – 16 , 64 , 160 , 320 और 640। तराजू सुरकोटदा से मिला है ।

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Answer – सिंधु घाटी सभ्यता में उल्लू के कोई अवशेष या प्रमाण नहीं मिले है । हड़प्पा सभ्यता के लोग बैल , गाय , भैंस , भेड़ और सूअर पालते थे । इन्हे कूबड़ वाला सांड विशेष प्रिय था ।

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Answer – सिंधु सभ्यता में शेर के कोई अवशेष नहीं मिले है । हड़प्पा सभ्यता के लोग बैल , गाय , भैंस , भेड़ और सूअर पालते थे । इन्हे कूबड़ वाला सांड विशेष प्रिय था । इसके अतिरिक्त ये गद्दे और ऊंट भी रखते थे । बन्दर , भालू , खरहा आदि जानवरो का भी ज्ञान था , परन्तु सिंधु सभयता में शेर के कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए है ।

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Answer – सिंधु घाटी सभ्यता में सर्वप्रथम भूकंप के अवशेष मोहनजोदड़ो नामक स्थान से प्राप्त हुए है । कई इतिहासकार का मानना है कि भूकंप कि वजह से सिंधु नदी कि धरा बदल गई , जिसके कारण मोहनजोदड़ो का पृष्ठ प्रदेश वीरान हो गया , और यही सिंधु सभ्यता के पतन का कारण बना ।

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Answer – मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजानिक स्थल विशाल स्नानागार है । यह 11.88 मीटर लम्बा , 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है । इसमें उतरने के लिए उत्तर तथा दक्षिण की और सीढिया बानी हुई थी । स्नानागार का फर्श पक्की ईंटो का बना है एवं इसके मध्य में स्नानकुंड स्थित था । इस विशाल स्नानागार का उपयोग सार्वजानिक रूप से धर्मानुष्ठान सम्बन्धी स्नान के लिए होता था ।

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Answer – धौलावीरा एकमात्र ऐसी जगह है , जहा से स्टेडयम के साक्ष्य प्राप्त हुए है । भारत में स्थित सिंधु सभ्यता की दूसरी सबसे बड़ी बस्ती है , जो तीन भागो में विभक्त एक आयताकार नगर हुआ करता था । यहाँ से कुँए के भी प्रमाण मिले है , जिसके कारण इसका नाम धौलावीरा रखा गया ।

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Answer – सिंधु सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता इसकी नगर योजना प्रणाली थी । हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दोनों नगरों के अपने – अपने दुर्ग थे । भवनों के दरवाजे सडको की और या सहायक सडको की और खुलते थे । Sindhu Ghati Sabhyata ( सिंधु घाटी सभ्यता ) में दो मंजिल घर भी थे । घरो में कई कमरे , रसोईघर , स्नानागार तथा बीच में आँगन की व्यवस्था थी ।

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Answer – हड़प्पा काल को कांस युग भी कहा जाता है । हड़प्पा काल में सभी शहरो में कांस से बने हुए बहुत सी वस्तुए भी प्राप्त हुई है , इसलिए हड़प्पा के नियोजित शहर कांस काल के थे ।

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Answer – हड़प्पा सभ्यता के नियोजित शहर कांस्य काल के थे , इसलिए कही – कही इसको कांस्य युगीन सभ्यता भी कहा गया है ।

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Answer – हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी की सभ्यता में सोने की आयात अफगानिस्तान , फारस और दक्षिण भारत से किआ जाता था ।

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